Saturday 26 May 2018

आगे बढ़ती चली जाती हूँ

मैं चलती जाती हूँ
लोगों से मिलती जाती हूँ
धोखे खाती हूँ और उनसे संभलती भी जाती हूँ
 समझ नहीं पाती या शायद समझा नहीं पाती हूँ
अपने ही तरीकों में कुछ उलझती सी जाती हूँ
 दिल की बात कह नहीं पाती हूँ
हिम्मत करती  हूँ तब भी समझा नहीं पाती हूँ

अब बस मैंने बंद ही कर दिया है कुछ भी कहना
अब बस अपने ही रास्तों पर चलती चली जाती हूँ
महसूस करना बंद कर दिया है क्यूंकि
समझ कर भी मैं कभी कभी नामसमझ बन जाती हूँ

दर्द की नुमाइश से कुछ नहीं होता है
आसुओं को लोग पानी समझ जाते हैं
अब बस मैं पत्थर हुई जाती हूँ
किसी को रोकती नहीं हूँ
किसी को बुलाती नहीं हूँ
बस जिंदगी की इन राहों में मैं आगे बढ़ती चली जाती हूँ  

Sunday 20 May 2018

फासला बना लिया था


तुमको आदत बना लिया था
इस कदर तुमको दिल में बसा लिया था
इनकार में इकरार को छिपा लिया था
चाहत को अपनी कुछ यूँ भुला दिया था
सशर्त  प्रेम में देहलीज़ को पार कर दिया था
तुमको एक पल देखने को सब बिसार दिया था

तुम्हें जिंदगी से ज़्यादा समझ लिया था
मेरी मुस्कराहट मुड़ गयी थी तुम्हारी मुस्कराहट के लिए
तुमको बस कुछ इस तरह अपना बना लिया था

रास्ते में तुमसे मिली तो अजनबियों की तरह 
कुछ ऐसा मैंने तुमसे फासला बना लिया था
तुम्हारे एक कदम से जिंदगी का रुख बदल गया था
अब उन राहों पर अकेले चलना स्वीकार कर लिया था
तुमसे शिकायत करना भी तो नहीं आता मुझे तो
तुम पर ऐतबार जो  कर लिया था