Saturday 26 May 2018

आगे बढ़ती चली जाती हूँ

मैं चलती जाती हूँ
लोगों से मिलती जाती हूँ
धोखे खाती हूँ और उनसे संभलती भी जाती हूँ
 समझ नहीं पाती या शायद समझा नहीं पाती हूँ
अपने ही तरीकों में कुछ उलझती सी जाती हूँ
 दिल की बात कह नहीं पाती हूँ
हिम्मत करती  हूँ तब भी समझा नहीं पाती हूँ

अब बस मैंने बंद ही कर दिया है कुछ भी कहना
अब बस अपने ही रास्तों पर चलती चली जाती हूँ
महसूस करना बंद कर दिया है क्यूंकि
समझ कर भी मैं कभी कभी नामसमझ बन जाती हूँ

दर्द की नुमाइश से कुछ नहीं होता है
आसुओं को लोग पानी समझ जाते हैं
अब बस मैं पत्थर हुई जाती हूँ
किसी को रोकती नहीं हूँ
किसी को बुलाती नहीं हूँ
बस जिंदगी की इन राहों में मैं आगे बढ़ती चली जाती हूँ  

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